आज से ये यात्रा प्रारम्भ, नयी नहीं है पर हर बार खोज तो नयी होती है, उद्देश्य भी नया होता है हर यात्रा का, वैसे जीवन यात्रा तो निरंतर चलती है तो यह यात्रा भी अनवरत चलनी चाहिए । शब्दों का खेल है वरना जितने द्वीप, जितने पर्वत और जितनी नदियां जीवन पथ में आती हैं उनका तो उल्लेख भी कहाँ हो सकता है ! पर कुछ जीवंत क्षण जो अनुभूति मैं ठहर गए अब तक या आगे पुनः अनुभूत किए जा सकें ऐसा प्रयास किया जा सके तो भी अच्छा है। जीए हुये को पुनः जी लेने का मोह पता नहीं क्यों है ! पर देखें हो सकता है आप भी कहीं सहयात्री हों ? अन्यथा क्या पता कोई नया अनुभव भी मिल जाये ?
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आज हम सब माँ सरस्वती से आशीर्वाद लें , वरदान माँगे...वरदान माँगें क्यूँकि ईश्वर पूर्णता का प्रतीक है और जो पूर्ण है उससे कुछ कम , कुछ अपूर्ण क्यूँ माँगे ! बहुत सारे नामों से माँ की अर्चना करते हैं हम ..शारदा, वीणापाणि, वागदेवी, श्रुति, स्मृति, श्वेत वसना आदि और हर नाम का बहुत वृहत अर्थ है ,यहाँ महत्व की बात ये है कि प्रत्येक नाम किसी गुण या कला से जुड़ा है , ज्ञान की देवी हैं तो इनकी कृपा के बिना पठन- पाठन सम्भव नहीं, वीणापाणि हैं इनके बिना संगीत का रस नहीं मिलेगा, कलाधरा हैं तो सब कलाओं की देवी हैं । अतः यदि जीवन में गुणी और कला- कौशल-युक्त बनना है तो माँ सरस्वती का आशीर्वाद चाहिए। एक बात और माँ सरस्वती पवित्रता, शुचिता, सौम्यता, सौभाग्य और ऐश्वर्य का भी प्रतीक हैं और ये सारे गुण एक ज्ञानी या कला सम्पन्न व्यक्ति में ही हो सकते हैं । तो आइये पवित्र उद्देश्य बनाएँ, उच्च कर्म करें और फिर अपने अंदर के ईश्वर को जागृत कर प्रार्थना करें - वर दे वीणा वादिनी, वर दे .
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